जबलपुर के बढ़वार इलाके के रहने वाले 45 वर्षीय इंद्र कुमार तिवारी की ज़िंदगी अब तक अकेलेपन में कट रही थी। उनके पास कुल 18 बीघा उपजाऊ जमीन थी, लेकिन एक संतान नहीं थी, एक पत्नी नहीं थी, और उम्र अब धीरे-धीरे उस मोड़ पर थी जहां उम्मीदें भी खुद को समेटने लगती हैं। धार्मिक प्रवचन देने वाले अनिरुद्धाचार्य जी के सामने बैठकर इंद्र ने अपनी भावनाएं खुले शब्दों में रख दीं—”शादी नहीं हुई महाराज, उम्र 45 हो गई है… 18 बीघा जमीन है, लेकिन वंश कैसे आगे बढ़ेगा?” यह संवाद किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं था, यह एक अकेले इंसान की आत्मा से निकली पुकार थी। वह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। लाखों लोगों ने इसे देखा, किसी को दया आई, किसी को प्रेरणा, लेकिन गोरखपुर की एक महिला—साहिबा बानो—को इस वीडियो में कुछ और ही दिखा।
साहिबा बानो ने इंद्र के दर्द और अकेलेपन को नहीं देखा, उसने देखा 18 बीघा जमीन। उसने तुरंत एक योजना बनाई। उसने अपनी पहचान को पूरी तरह से बदलने का फैसला किया। एक फर्जी आधार कार्ड बनवाया और खुद को एक ब्राह्मण लड़की बताकर ‘खुशी तिवारी’ नाम से इंद्र के संपर्क में आई। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के जरिए बातों का सिलसिला शुरू हुआ। साहिबा उर्फ खुशी ने खुद को साध्वी, धार्मिक प्रवृत्ति की और शादी के लिए पूर्णतया तैयार बताया। इंद्र, जो वर्षों से एक सच्चे रिश्ते की तलाश में थे, खुशी की बातों में पूरी तरह से बहक गए। उन्हें लगा, शायद उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर मिल गया है।
धीरे-धीरे बातचीत गहराने लगी, वीडियो कॉल, भावनात्मक बातचीत, भविष्य की योजनाएं—सब कुछ वैसा ही चल रहा था जैसे कोई सच्चा रिश्ता जन्म ले रहा हो। जब इंद्र ने शादी की बात की, तो खुशी ने तुरंत हामी भर दी। तय हुआ कि इंद्र गोरखपुर आएंगे और वहीं मंदिर में शादी करेंगे। और यही वह मोड़ था जहां से प्यार का सपना धीरे-धीरे एक खूनी साजिश में बदल रहा था।
इंद्र कुमार तिवारी लगभग 600 किलोमीटर दूर से गोरखपुर पहुंचे। वहां एक मंदिर में दोनों ने विधिपूर्वक शादी की रस्में निभाईं। जयमाल, सिंदूर, वचन, तस्वीरें—हर चीज़ वैसी ही थी जैसी एक आम शादी में होती है। इंद्र को अब लगने लगा था कि उनकी ज़िंदगी में नया सवेरा हो गया है, उन्हें पत्नी मिल गई है, अब वंश भी आगे बढ़ेगा और 18 बीघा ज़मीन पर खेलते हुए बच्चे दौड़ेंगे। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि मंदिर में जिन हाथों ने उनकी मांग भरी थी, उन्हीं हाथों में अगले कुछ घंटों बाद खून टपकता हुआ चाकू होगा।
शादी के चंद घंटों बाद, गोरखपुर के पास ही एक सुनसान जगह पर ले जाकर खुशी तिवारी और उसके दो साथियों ने मिलकर इंद्र की बेरहमी से हत्या कर दी। उन पर एक के बाद एक कई वार किए गए और जब वह पूरी तरह निष्क्रिय हो गए, तो उनका शव कुशीनगर जिले के हाटा थाना क्षेत्र में एक नाले के पास फेंक दिया गया। इसके बाद तीनों आरोपी मौके से फरार हो गए।
6 जून को स्थानीय पुलिस को नाले के पास एक अज्ञात शव मिला। शव की हालत खराब थी और पहचान कर पाना मुश्किल था। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया, लेकिन उसकी शिनाख्त कई दिनों तक नहीं हो सकी। इस बीच जबलपुर पुलिस ने इंद्र कुमार तिवारी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की और उसके आधार पर दोनों जिलों की पुलिस के बीच संपर्क स्थापित हुआ। जब पोस्टर और हुलिए का मिलान हुआ तो मृतक की पहचान इंद्र कुमार तिवारी के रूप में हुई। इसके बाद केस ने एक नया मोड़ लिया।
पुलिस ने इंद्र के मोबाइल की कॉल डिटेल्स और चैट हिस्ट्री खंगालनी शुरू की। सामने आया कि शादी से पहले उनकी बातचीत एक ‘खुशी तिवारी’ नाम की महिला से हुई थी, जिसके असली दस्तावेज गोरखपुर से नहीं, बल्कि एक फर्जी पहचान से जुड़े थे। जब जांच को और गहराई से किया गया, तब खुलासा हुआ कि खुशी तिवारी दरअसल साहिबा बानो नाम की एक मुस्लिम महिला थी, जिसने न सिर्फ फर्जी नाम अपनाया बल्कि इंद्र को जाल में फंसाकर उनकी हत्या कर दी।
पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि साहिबा ने पहले से ही एक युवक ‘कुशल’ से शादी कर रखी थी। पुलिस को शक है कि उसी कुशल और एक अन्य साथी के साथ मिलकर उसने इस हत्याकांड को अंजाम दिया। हत्या का मकसद स्पष्ट होता गया—साहिबा की योजना थी कि इंद्र की हत्या के बाद वह खुद को उनकी पत्नी और विधवा साबित करके उनकी 18 बीघा जमीन पर कानूनी दावा पेश कर सके। उसने इसके लिए पहले से ही दस्तावेज़ तैयार करने और झूठे गवाहों का इंतज़ाम करना शुरू कर दिया था।
कुशीनगर और जबलपुर पुलिस के संयुक्त प्रयासों से साहिबा बानो उर्फ खुशी तिवारी और उसके दो साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस अब यह पता लगाने में जुटी है कि क्या यह साहिबा बानो की पहली हत्या थी या वह पहले भी ऐसे मामलों में संलिप्त रही है। उसके कॉल रिकॉर्ड्स और पुराने संपर्कों की भी जांच की जा रही है। इस केस ने सोशल मीडिया के उस अंधेरे पक्ष को उजागर किया है जहां भावनाओं का व्यापार होता है, और इंसानी जानें महज लालच की कीमत पर खरीद ली जाती हैं।
इंद्र की मौत न सिर्फ एक अकेले इंसान की हत्या है, बल्कि यह एक पूरे विश्वास तंत्र की हत्या है। यह घटना बताती है कि सोशल मीडिया की दुनिया में किसी की भावनाएं भी अब दूसरों के लिए शिकार का मैदान बन चुकी हैं। एक अकेला आदमी, जिसे जीवनसाथी की तलाश थी, उसका अंत किसी के जमीन हड़पने की साजिश में हो गया।
आज पुलिस भले ही तीनों आरोपियों को पकड़ चुकी है, लेकिन इंद्र की मां, उनका परिवार, और वो 18 बीघा ज़मीन अब भी सवाल पूछ रही है—क्या इंद्र की मौत सिर्फ एक हत्या थी या हमारे समाज की उस चुप्पी का नतीजा, जो अकेलेपन को अपराधियों का शिकार बनने देती है?